तुम बहुत से ख़्वाब निगाहों में सजाये बैठी हो
मैंने हजारों अरमान दिल में पाल रखें हैं ,
एक मंज़र की चाहत तेरे वजूद को है मुझसे ,
मैंने कुछ सपने तेरे नाम के संभाल रखे हैं ।
तुम को यकीं तो है मगर एक डर भी है
की तेरे सपने कहीं मेरी आंखों से टूट न जाएँ
तेरी ज़िन्दगी का सहारा हैं जो खूबसूरत लम्हें
अचानक वो कहीं तुझसे मुझसे रूठ ना जाएँ । ।
( उपरोक्त नज़्म कवि की अप्रकाशित रचना है )
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