Sunday 1 March 2009

तुम बहुत से ख़्वाब निगाहों में सजाये बैठी हो

मैंने हजारों अरमान दिल में पाल रखें हैं ,

एक मंज़र की चाहत तेरे वजूद को है मुझसे ,

मैंने कुछ सपने तेरे नाम के संभाल रखे हैं ।

तुम को यकीं तो है मगर एक डर भी है

की तेरे सपने कहीं मेरी आंखों से टूट न जाएँ

तेरी ज़िन्दगी का सहारा हैं जो खूबसूरत लम्हें

अचानक वो कहीं तुझसे मुझसे रूठ ना जाएँ । ।

( उपरोक्त नज़्म कवि की अप्रकाशित रचना है )

No comments:

Post a Comment